Delhi Government has decided to give employment to players

अपनी सरकार से क्यों नाराज़ हैं दिल्ली के अखाड़ेबाज?

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

देर से ही सही, दिल्ली सरकार ने एनआईएस, क्वालीफाइड या ओलंपिक, एशियाड, कामनवेल्थ में भाग ले चुके खिलाड़ी -कोचों को रोज़गार देने का फ़ैसला किया है। शिक्षा निदेशालय ने 171 सहायक कोचों के रिक्त स्थानों को भरने का स्वागतयोग्य कदम ज़रूर उठाया है पर दिल्ली के अधिकांश बेरोज़गार कोच इसलिए खुश नहीं हैं क्योंकि इस पद के लिए 30साल तक के अभ्यर्थी ही आवेदन कर सकते हैं। राजधानी के कई अखाड़ों ने तो बाक़ायदा दिल्ली सरकार के खेल विभाग से गुहार लगाई है और माँग की है कि देश के अन्य राज्यों की तरह उम्र सीमा को दस साल बढ़ाया जाए।

गुरु प्रेमनाथ अखाड़ा, गुरु लाला राम अखाड़ा, गुरु बद्री अखाड़ा, डेसू अखाड़ा, खलीफा पथराम अखाड़ा, विजय लाल अखाड़ा, राजपूत व्यायामशाला और अन्य कई अखाड़ों ने बाक़ायदा लिखित नाराज़गी व्यक्त की है और माँग की है कि न्यूनतम आयु सीमा को देश के अन्य राज्यों की तर्ज़ पर बढ़ाया जाए।

राजस्थान, हिमाचल, गुजरात, पंजाब, चंडीगढ़ और कुछ अन्य प्रदेशों में 40 साल तक के कोचों के लए दरवाजे खुले हैं, जबकि हरियाणा, उत्तरप्रदेश, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, में 42 और असम, उड़ीसाऔर वेस्ट बंगाल में 45 साल तक के क्वालीफाइड कोच सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। ओबीसी और एससी/ एस टी के लिए पाँच से सात साल की अतिरिक्त छूट का प्रावधान है।

दिल्ली के कोचों का तर्क यह है कि तीस साल की उम्र खेलने की होती है और हमारे बहुत से खिलाड़ी तो 40-45 साल तक मैदान में डटे रहते हैं। तत्पश्चात दो तीन साल एनआइएस करने और कोचिंग के गुर सीखने में लग जाते हैं। ऐसे में कोच के लिए 30 साल की उम्र एम मज़ाक जैसा है। भला कोई कैसे इतनी कम उम्र में कोच बन सकताहै? यदि बन भी गया तो अपने हम उम्र या चार-आठ साल बड़े खिलाड़ियों को क्या सिखाएगा?

दिल्ली के कुश्ती गुरुओं के अनुसार देश को उनके अखाड़ों ने अनेक अंतरराष्ट्रीय और ओलंपियन पहलवान दिए हैं। गुरु हनुमान, छत्रसाल, मास्टर चंदगी राम, कैप्टन चाँद रूप और अन्य अखाड़ों का इतिहास गवाह है कि उनके गुरु ख़लीफाओं ने अपने अनुभव और वर्षों की मेहनत से अनेक चैम्पियन पहलवान पैदा किए। ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि वे अच्छे पहलवान रहे और बड़ी उम्र में कोचिंग के मैदान में उतरे।

स्थानीय कोचों को इस बात की भी नाराज़गी है कि देश के अन्य प्रदेशों में अपने राज्य के कोचों के लिए अलग से कोटा तय होता है लेकिन दिल्ली में देश भर से आवेदन माँगे गए हैं। वैसे भी दिल्ली के हज़ारों कोच और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बेरोज़गार घूम रहे हैं और उनकी कतार लगातार लंबी हो रही है।

प्रेमनाथ अखाड़े के कोच और अर्जुन अवॉर्डी दिव्या काकरान के कोच विक्रम प्रेमनाथ के अनुसार दिल्ली के कोच अपनी सरकार द्वारा तय न्यूनतम आनुसीमा को लेकर बेहद नाराज हैं और सरकार से आग्रह करते है कि कमसे कम चालीस साल से बड़ी उम्र को आधार बनाया ताकि भावी खिलाड़ियों को सिखाने पढ़ाने के लिए काबिल और असरदार लोगों को नियुक्त किया जा सके।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *