Special on the death anniversary of Olympian Surjeet singh

ओलंपियन सुरजीत की पुण्यतिथि पर विशेष!

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

How a Benefit match turned into a Memorial one?

उस समय जबकि हाकी मैंचों के नतीजे प्राय: पेनल्टी कार्नर से तय होते थे और पेनल्टी कार्नर में दक्षता रखने वाली टीमों का दबदबा तय होता था, भारत के पास भी एक विशेषज्ञ था, जिसे हमने छोटी उम्र में ही खो दिया। जी हाँ, उस विशेषज्ञ का नाम था सुरजीत सिंह, जिसे 6 जनवरी, 1984 को मौत ने भारतीय हॉकी से छीन लिया था। जालंधर के बिधिपुर गाँव के सुरजीत की 33 साल की उम्र में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।

सुरजीत उस समय भारतीय हाकी को छोड़ कर गए जब वह देश में और खास कर पंजाब में अपने खेल के उत्थान के लिए प्रयास रत थे। हालाँकि उनके अधूरे कामों को सुरजीत मेमोरियल हाकी सोसाइटी पूरा करने में लगी है लेकिन सुरजीत के बारे में कहा जाता है कि वह भारतीय हाकी में अब तक के श्रेष्ठ रक्षक और पेनल्टी कार्नर पर गोल जमाने वाले कलाकार थे। राष्ट्रीय टीम के अलावा, रेलवे, एयर लाइन्स और पंजाब पुलिस के लिए उन्होने कई शानदार गोल जमा कर वाह वाह लूटी।

सुरजीत सिंह उस भारतीय हाकी टीम के प्रमुख सदस्य थे जिसने 1975 के क्‍वालालंपुर विश्व कप में खिताब जीता था। हालाँकि उन्हें 1973 में भारतीय विश्व कप टीम में भी शामिल किया गया था और तत्पश्चात 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में भी खेले। विश्व विजेता टीम में अनेक भारी भरकम खिलाड़ी शामिल थे, जिनमे कप्तान अजित पाल सिंह, कौशल के धनी अशोक ध्यान चन्द, असलम शेर ख़ान, गोविंदा, माइकल कींडो, फिलिप्स आदि महान खिलाड़ी प्रमुख हैं। लेकिन इन सितारों के बीच सुरजीत का अपना अलग ही जलवा था। उसे हर कोई शानदार रक्षण और पेनल्टी कार्नर पर गोल भेदने की कलाकारी के लिए जानता पहचानता था।

अशोक, अजितपाल और गोविंदा से जब कभी सुरजीत के बारे में बात हुई तो सभी ने उसे गजब का खिलाड़ी बताया और कहा कि वह अच्छे से अच्छे फारवर्ड को रोकने में दक्ष तो था ही पेनल्टी कार्नर पर उसके गोल शत प्रतिशत होते थे। यही कारण है कि उसे आल स्टार एशियन इलेवन और वर्ल्ड इलेवन में स्थान दिया गया। एशियाई खेलों और ओलंपिक में भी उसका प्रदर्शन शानदार रहा। भारतीय टीम की कप्तानी करने वाले सुरजीत की शादी महिला हाकी टीम की कप्तान चंचल रंधावा से हुई थी।

हाकी के लिए जीने मरने का संकल्प लेने वाले सुरजीत चाहते थे कि हाकी खिलाड़ियों को क्रिकेटरों की तरह सुविधाएँ मिलें। 1983 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के स्वागत सत्कार के बाद उन्हें पता चला कि वास्तव में भारत में हाकी की स्थिति कैसी दयनीय है। उन्होंने क्रिकेट खिलाड़ियों के बेनीफ़िट मैचों की तर्ज पर हाकी खिलाड़ियों के मैच आयोजित करने की ठानी और कुछ उत्साही मित्रों के साथ पूरी योजना भी बना डाली थी। किसी कारणवश चार जनवरी को खेला जाने वाला मैच स्थगित हुआ और “ओलंपियन सुरजीत सिंह बेनिफिट मैच सुरजीत मेमोरियल मैंच” में बदल गया।

सुरजीत भले ही नहीं रहे लेकिन उनके मित्रों और हाकी प्रेमियों ने उनकी याद में सुरजीत सिंह हाकी सोसाइटी का गठन कर उनकी याद में 1984 में एक हाकी टूर्नामेंट का आयोजन शुरू किया। बर्टन पार्क स्टेडियम का नाम बदल कर सुरजीत हाकी स्टेडियम कर दिया गया, जबकि उनके गाँव ‘ढाकला’ का नाम “सुरजीत सिंह वाला” रखा गया, जोकि एक महान खिलाड़ी को सच्ची श्रद्धांजलि है। बेशक, सुरजीत सोसाइटी ने एक महान खिलाड़ी को जिंदा रखा है, जिसके बैनर तले सुरजीत हाकी टूर्नामेंट का आयोजन पिछले 38 सालों से किया जा रहै है।

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