Pro Kabaddi League 2020

कबड्डी का कबाड़ा करने पर तुले……

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

आईपीएल के बाद भारत में कबड्डी लीग ने अन्य खेलों की पेशेवर लीग को बहुत पीछे छोड़ दिया था और एक समय लग रहा था कि कबड्डी अन्य खेलों से बहुत आगे निकल जाएगी। लेकिन 2018 के एशियाई खेलों ने जहाँ एक ओर भारतीय कबड्डी के सम्मान को गहरा आघात पहुँचाया तो साथ ही यह भी साफ हो गया कि इस विशुद्ध भारतीय खेल में भारतीय बादशाहत संकट में पड़ गई है।

हालाँकि ईरान पिछले कुछ सालों से भारत के करीब पहुँचने के लिए प्रयासरत था और अंततः उसने भारतीय एकाधिकार को दरकिनार करते हुए ना सिर्फ़ पुरुषों का, महिलाओं का खिताब भी जीत लिया। भारतीय हार को लेकर काफ़ी कुछ कहा सुना गया। टीम के चयन पर उंगलियाँ उठीं, खिलाड़ियों और टीम प्रबंधन पर आरोप लगे। कुछ एक ने तो यहाँ तक कहा कि गंभीरता की कमी साफ नज़र आई।

कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार भारतीय कबड्डी को एक झटका ज़रूरी था, क्योंकि खिलाड़ी खुद को खुदा समझने लगे थे और अधिकारियों ने गुटबाजी का खेल शुरू कर दिया था। नौबत यहाँ तक आ गई थी कि एशियाई खेलों में खिताब गँवाने वाली पुरुष और महिला टीमों का उन खिलाड़ियों से मुकाबला कराया गया जिन्हें टीम में नहीं चुना गया था, जोकि बेहद भद्दा मज़ाक साबित हुआ। फिलहाल एक सेवानिवृत न्याधीश की देखरेख में कबड्डी फ़ेडेरेशन का कामकाज चल रहा है|

भले ही कोविड 19 के चलते कबड्डी की गतिविधियाँ लगभग ठप्प पड़ी हैं लेकिन एक बार जब फिर से खेल पटरी पर आएँगे, कबड्डी का सबसे पहला लक्ष्य अपना खोया सम्मान अर्जित करने का होगा। पुरुष वर्ग में सात और महिलाओं के दो एशियाड स्वर्ण जीतने वाले देश के खिलाड़ियों लिए एशियाई खेल अब ज़्यादा दूर नहीं हैं। भले ही अन्य खेलों को पहले ओलंपिक की चिंता है परंतु कबड्डी के लिए अभी ओलंपिक बहुत दूर है और भारतीय कबड्डी के आकाओं ने अपना रवैया नहीं सुधरा तो उनक खेल शायद ही कभी ओलंपिक में शामिल हो पाएगा।

भारतीय कबड्डी के लिए एशियाई खेल कुछ वैसे ही उत्साहवर्धक रहे हैं जैसे हॉकी के लए ओलंपिक। लेकिन वक्त के साथ साथ हॉकी की चमक फीकी पड़ती चली गई। आठ ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाली भारतीय हॉकी ने पिछले 36 सालों में कोई पदक नहीं जीता है। कबड्डी के जानकारों को इस बात का डर है कि यदि कबड्डी के दो तीन गुट एक नहीं हुए तो उनका खेल कबड्डी का खेल बिगाड़ सकता है। सत्ता और कुर्सी की लड़ाई के चलते प्रो कबड्डी लीग भी आख़िर कब तक चल पाएगी?

चूँकि कोरोना काल में करने के लिए कुछ खास नहीं है, ऐसे में बेहतर यह होगा कि कबड्डी के कर्णधार अपने अहंकार और मतभेद भुला कर एकजुट होने का प्रयास करें। कबड्डी लीग और खेलो इंडिया के चलते देश में कई अच्छे खिलाड़ी उभर कर आए हैं। खिलाड़ियों को करोड़ों तो मिल ही रहे हैं उन्हें सरकारी और गैर सरकारी विभागों में नौकरियाँ भी मिल रही हैं। कमी है तो प्रशासनिक स्तर पर। अवसरवादी नहीं सुधरे तो कबड्डी का कबाड़ा हो सकता है।

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